G NEWS 24:-सुप्रीम कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को बड़ी राहत देते हुए, शीर्ष अदालत ने मोहम्मद जुबैर को सभी मामलों में अंतरिम जमानत दे दी हैं.
तथा अदालत ने कहा कि उन्हें अंतहीन समय तक हिरासत में बनाए रखना उचित नहीं है. तथा अदालत ने साथ ही यूपी में दर्ज सभी FIR को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में ट्रांसफर करने के आदेश दे दिए हैं और यूपी सरकार की तरफ से बनाई गई एसआईटी को भंग कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही आज शाम करीबन छह बजे तक मोहम्मद जुबैर की रिहाई भी हो जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ से जुड़ा है. यह फरवरी 2017 में शुरू हुआ. और 20 जून 2022 को एक FIR दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल में दर्ज हुई. और इसमें IPC की धाराएं भी थीं. बाद में इसमें FCRA भी जोड़ दिया गया. 22 जून को गिरफ्तारी हुई. और 1 दिन की हिरासत मांगी गई थीं. बाद में उसे भी बढ़ाया गया , 30 जून को बंगलौर में उसी के घर की तलाशी ली गई थी. बाद में न्यायिक हिरासत हुई. और 15 जुलाई को नियमित बेल मिली. दिल्ली पुलिस ने जांच की स्टेटस रिपोर्ट एडिशनल सेशन्स जज को पेश की. और उसमें लिखा है कि जांच उसके ट्वीट्स से जुड़ी हुई है. इसमें 7 ट्वीट का ज़िक्र है.
SC ने कहा कि दिल्ली पुलिस की जांच का दायरा FCRA सेक्शन 35 से बढ़ गया हैं. इस FIR के अलावा और भी यूपी में भी कई FIR दर्ज हुए . एक FIR जून 2021 में गाज़ियाबाद के लोनी थाने का, इसके अलावा भी 2021 में मुजफ्फरनगर में भी एक FIR हुई थी. 2021 में चंदौली थाने की भी है. 2021 में लखीमपुर के मोहमदी थाने की भी FIR है. 2022 में सीतापुर, हाथरस की भी FIR,एक केस में जमानत मिली. ,कुछ में हिरासत चल रही है.,अदालत ने कहा कि 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने सीतापुर केस में अंतरिम जमानत दी. 12 जुलाई को हमने उसे और आगे बढ़ाया. और हमारे सामने अब जो याचिका है उसमें यूपी के 6 FIR रद्द करने की मांग की गई है. और यह भी कहा गया है
याचिकाकर्ता ने सभी FIR में जमानत और आगे गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग भी की है. हम आज याचिकाकर्ता की वकील वृंदा ग्रोवर और यूपी की वकील गरिमा प्रसाद को सुना. हमें पता चला कि ये सभी मामले ट्वीट्स से जुड़े हैं. उन सभी मे एक जैसी धाराएं लगी हैं. दिल्ली के मामले में नियमित बेल मिल चुकी है.
SC कहा है कि याचिकाकर्ता की वकील ने ये कहा कि उसने कई ट्वीट में यूपी पुलिस को टैग कर और भाषण देने वालों पर कार्रवाई की भी मांग की. लेकिन अब उसे ही परेशान किया जा रहा है. उसने किसी धर्म भी का अपमान नहीं किया हैं. अदालत ने कहा कि इसका विरोध करते हुए यूपी की वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता पत्रकार नहीं है. उसने सांप्रदायिक नफरत फैलाने के मकसद से सभी ट्वीट किए हैं. यूपी सरकार ने SIT का भी गठन किया है ताकि पुलिस से कोई कानूनी गलती न हो सके.